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सहायक प्रबंधक(उपकरणीकरण एवं स्वचालन)

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

******** महत्वाकांक्षा और आत्मविश्वास ********

         अब सिर्फ अर्थव्यवस्था ही वैश्विक ताकत का अनुक्रम तय नहीं करती है। नई शक्तियां अहम भूमिका अदा कर रही हैं। मौजूदा समय के भौतिकवादी माहौल ने लोगों की महत्वाकांक्षाओं और अपेक्षाओं को काफी बढा दिया है। अब आदमी के अंदर अच्छा घर, कार और आधुनिक जीवन की सभी सुख सुविधाएं हासिल करने की लालसा बढती जा रही है। इक्कीसवीं सदी में पर्यावरण और प्रौद्योगिकी ताकत के हस्तांतरण के दो अहम कारक बन गए हैं। कोई भी राष्ट्र जो भावी पीढ़ी के हिस्से के लिए दावा ठोंकता है, उसके लिए विकास की मांग और धरती की बेहतरी में संतुलन बैठाना सबसे जरूरी हो गया है।  महत्वाकांक्षा और आत्मविश्वास के भरोसे ही किसी तरह के विकास की आशा की जा सकती है।
  
        जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आत्मविश्वास की शक्ति सर्वाधिक आवश्यक है। आत्मविश्वास के अभाव में किसी कामयाबी की कल्पना नहीं की जा सकती है । आत्मविश्वास के सहारे कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त करना भी सरल हो जाता है।
        महत्वाकांक्षा और आत्मविश्वास का जीता जागता उदाहरण एक मध्यम वर्गीय परिवार मे रहने वाले खजांची नाम के आत्मविश्वासी व्याक्ति से सहज ही मिल सकता है। खजांची का जन्म उत्तरप्रदेश के बस्ती जिले के एक छोटे से गांव बरडीहा मे हुआ, जहाँ ना तो समुचित तरीके से पढ़ने की व्यावस्था थी, ना ही आधुनिक दुनिया के बारे मे जानने की राह। यूं तो इनके पिता राजस्व विभाग मे सरकारी कर्मचारी थे, लेकिन संयुक्त परिवार के कारण सामजिक एवं पारिवारिक जिम्मेदारी इनके ही कंधे पर थी, और इनकी माता सरल गृहणी जो की अशिक्षित है। इनके पिताजी का कार्यस्थल गांव से करीब 45 किलोमीटर दूर बांसी जगह पर था, यातायात के अभाव मे इन्हे बांसी मे ही रहना पड़ता था। परिवार या यूं कहे की समाज मे कोई भी ऐसा शिक्षित व्यक्ति नही था, जिससे कुछ प्रेरणा मिल सके।
         सौभाग्य की बात यह थी कि लगभग 15-20 दिन के अंतराल पर जब इनके पिताजी घर पर आते, तभी कुछ करने की प्रेरणा जगाते और सामाजिक उदाहरणों से अवगत होते थे।  अधिकतर 1-2 दिन मे ही वापस बांसी लौट जाते, इसी छोटी यादों और प्रेरणास्रोत से जीवन जीने और कुछ अच्छा कर गुजरने की राह मिलती और फिर अगले बार आने की आस जग जाती।
         खुश रहो और खुशियाँ फैलाऒ । विचारों का आदान प्रदान करो, हिम्मत हारना सबसे ग़लत धारणा  है। निराशा वादी  मत बनो। जब इरादे नेक हों और रास्ता पाक हो तो कितना भी मुश्किल काम आसान हो जाता है। इस तरह की बातें रहरह कर याद आती थी। आत्मविश्वास को जागृत करके और मजबूत बनाकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता अर्जित की जा सकती है । सत्य, सदाचार, ईमानदारी, सहृदयता आदि मानवीय गुणों को धारण करके आत्मविश्वास का संचार किया जा सकता है।
अब ये बातें कूट कूट कर खजांची मे भर गई। जैसा अक्सर सुनने को मिलता है कि आदर्श और वास्तविक जीवन मे बहुत अंतर होता है। आज से लगभग तीस वर्ष पहले ग्रामीण जीवन के रहन सहन के बारे मे कल्पना करना कोई कठिन काम नही है। जब आदमी रोटी, कपड़ा और मकान के अतिरिक्त कुछ सोच भी नही पाता था। ऐसी ही कुछ स्थिति थी खजांची के परिवार की। इनके पिताजी के उत्तम विचार अर्थात किसी के साथ आंशिक व्यवहार न हो इसके कारण अपने एवं अपने छोटे भाई के परिवार को एक जैसा मानते हुए सभी की आवश्यकता को पूरा करने मे ही परेशान रहते थे।
        लेकिन इसी परिवार के बीच खजांची  मे अपने पिताजी के गुणों के साथ-साथ एक और अनमोल गुण समाहित था वो था महत्वाकांक्षा और आत्मविश्वास। इसी गुण के कारण उसे उस जुझारू समाज से अलग और अनोखा बनने की राह दिखी, जो आज के समाज मे एक  उदाहरण बन गया है। आज भी उस गांव मे खजांची जैसा बनने की कल्पना होती है।


उस समय अर्थात लगभग तीस वर्ष पहले, खासकर गावों मे प्राय: जन्म के पांच वर्ष बाद ही पठन-पाठन के लिये किसी स्कूल मे बच्चों को भेजा जाता था । लेकिन खजांची अपने पिताजी से प्रेरित होकर करीब साढे तीन वर्ष से ही गांव के एक प्राइमरी स्कूल मे जाने लगा । लेकिन कुछ महीने बीतने के बाद जब वहां पर कुछ खास ज्ञानार्जन आभास नही हुआ, तब डरते-डरते पिताजी से दूसरे प्राइमरी स्कूल जहां पर पहले से ही गांव के कुछ बच्चे जाते थे, जो गांव से लगभग ढाई किलोमीटर दूर था, मे जाने का आग्रह किया। इस पर इनके पिताजी अपने बच्चे के उत्सुकता को देखते हुए मंजूरी दे दी। अब खजांची के आत्मविश्वास को मानो एक अनोखी दिशा मिल गयी हो । यहां पर कक्षा प्रथम से कक्षा पांच तक का सफर, प्रतिदिन पैदल चलकर स्कूल आना जाना और कुशल विद्यार्थी के रूप मे पहचान बनाकर पूरी हुई ।
"रास्ता तलाशों और अपनी भूमिका निभाओ"
         लेकिन आगे की पढ़ाई के लिये उच्चतर माध्य्मिक स्कूल मे दाखिला लेना था, इसके लिये दो विकल्प थे। वैसे ज्यादा कुछ स्कूल के बारे मे पता नही था, लेकिन अनुशासन को लेकर थोड़ी भिन्नता जरूर थी । अच्छे विद्यार्थी के रूप मे समाज मे सम्मान मिलने लगा था। यह भी एक कारण था, जिसके वजह से आत्मविश्वास बढ़ गया और अभियंता बनने की महत्वाकांक्षा ने जन्म लिया। बचपन से समाहित हो चुकी आदर्श और अनुशासन ने अनुशासित स्कूल मे प्रवेश लेने को प्रेरित किया । यहां पर अध्यापक श्री राम संवारे, जो की कक्षाध्यापक और विज्ञान विषय भी पढ़ाते, ने जीवन के अध्याय मे बहुत अहम भूमिका निभाई । गांव के स्तर से तो सबसे अच्छा विकल्प और सबसे अच्छा स्कूल था। लेकिन हाईस्कूल परीक्षा मे बहुत कम 52 प्रतिशत, लेकिन कक्षा मे उत्तम स्थान प्राप्त हुआ। लेकिन ये कम प्रतिशत भी आत्मविश्वास को तोड़ नही सके, बल्कि नये उत्साह के साथ अभियंता बनने के लिये विकल्प के रूप मे गणित विषय को चुना। फलस्वरूप इंटरमिडियट मे अंको का प्रतिशत थोड़ा बढ़कर 59.4 हुआ । अंको के इस परिणाम से संतुष्टि तो नही हुई लेकिन आत्मविश्वास को जगाये रखा । एक मंत्र है जो प्रेरित करता रहता है-
“निराश ना हो, विचार ना बदल, सफलता कभी भी मिल सकती हैं
और देखते–देखते बी.टेक मे प्रवेश हो गया, और अब एक संकल्प के साथ सिर्फ कॉलेज मे ही नही बल्कि विश्वविद्यालय स्तर की वरीयता सूची मे स्थान आने लगा। जिसके परिणाम स्वरूप उत्तर प्रदेश तकनीकि शिक्षा परिषद से छात्रवृत्ति भी मिली। अब जाकर आत्मविश्वास को एक नया आयाम मिला था। बी.टेक मे 82.5 प्रतिशत के साथ उपाधि और ग्रेजुएट एप्टीच्युड टेस्ट इन इंजीनियरिंग मे अर्हता प्राप्त किया, इसके बाद एम.टेक की उपाधि और फिर देश की विशाल कम्पनी से कैरियर की शुरूआत हुई और देश निर्माण की भूमिका मे सहयोग हुई। वास्तव में आत्मविश्वास की शक्ति अद्भुत होती है ।प्रत्येक मनुष्य को सदैव आत्मविश्वास को मजबूत बनाए रखना चाहिए तभी वह जीवन में उन्नति कर सकता है । व्यावहारिक अनुभव है जिसमें एक सफलता की आकांक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता है, और वास्तविकता पर काबू पाने के लिए आत्मविश्वास को पहचानना है, और एक प्रेरित सकारात्मक ऊर्जा को विकसित करने का प्रयास करें मनुष्य के अंदर आत्मविश्वास उत्पन्न होगा तो वह भविष्य में जिम्मेदार नागरिक बनकर देश के विकास में अपना योगदान दे पाएंगे
                               
                                 ...........समाप्त............

       

 




4 टिप्‍पणियां:

  1. कहानी का भाव और उपयोगिता बिल्कुल महत्वपूर्ण है

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  2. Hey heeralal i read ur idea in ur blog this exlant i proud u bcos u r my friend with a good think,honesy, sucses amd a nice personlty

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद मित्र,
    आप मुझे बचपन से जानते है , इस लिये आप सार्थकता को भँलीभाँत जानते है.यदि किसी तथ्य पर टिप्पणी करना चाहते तो आप का स्वागत है.

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